बहुत भाग्यशाली वह है जिसने प्रशंसा करना सीखा है , लेकिन ईर्ष्या से नहीं | दुसरो से ईर्ष्या करने से न तो उनके अच्छे भाग्य कम होते है, और न ही अपना स्वयं का बढ़ता है | Bk Shivani
प्रशंसा को वीरता के कार्यों, की सुगंध ही समझिए | Socrates
अपनी प्रशंसा सुनकर हम इतने मतवाले हो, जाते हैं कि फिर हममें विवेक की शक्ति भी, लुप्त हो जाती है बड़े से बड़ा महात्मा भी, अपनी प्रशंसा सुनकर फूल उठता है। Premchand
प्रशंसा से बचें यह आपके व्यक्तित्व, की अच्छाइयों को घुन की, तरह चाट जाती है | Chankya